अक्षय तृतीया पर सारनी हनुमान मंदिर में धूमधाम से मनाया गया भगवान परशुराम का जन्मोत्सव
सारनी। (गणतंत्र वार्ता)अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर बुधवार को पुलिस लाइन हनुमान मंदिर में ब्राह्मण समाज के द्वारा भगवान श्री परशुराम जन्मोत्सव श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर ब्राह्मण समाज के लोगों ने बड़ी संख्या में भाग लिया और भगवान परशुराम का अभिषेक, सुंदरकांड का पाठ, पूजा-अर्चना कर आरती एवं पुष्पांजलि अर्पित की। पूजा के उपरांत उपस्थित जनसमुदाय ने भगवान परशुराम की जयघोष के साथ वातावरण को भक्तिमय कर दिया। इस अवसर पर सुदेश तिवारी ने कहा कि भगवान परशुराम न्याय के देवता थे और इन्हें लगता था कि अगर कहीं न्याय के साथ धोखा हो रहा है तो वे लड़ाई के लिए खड़े हो जाते थे। आज आवश्यकता है भगवान परशुराम के बताए गए रास्ते पर चलने का एवं कार्य करने का। वही दीपक तिवारी ने कहा कि भगवान परशुराम हम सबकों न्याय के साथ आगे बढ़ने का रास्ता देते हैं। उनके बताए गए रास्ते पर अगर चला जाए तो निश्चित तौर पर यह देश महान बनेगा। आवश्यकता है भगवान परशुराम के पद चिह्न पर चलकर कार्य करने का । कार्यक्रम के दौरान सामाजिक एकता और सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण का संदेश भी दिया गया। तत्पश्चात भोजन प्रसादी का वितरण किया गया। इस मौके पर ब्राह्मण समाज के पंडित संतोष शर्मा, प्रवीण पचौली, श्रीकांत दुबे, अनिल शर्मा, पंकज उपाध्याय, डी एन दुबे, गोविंद तिवारी, दीपेश दुबे, शशांक चतुर्वेदी सहित बड़ी संख्या में ब्राह्मण समाज के लोग उपस्थित थे।
परशुराम जयंती का सनातन धर्म में विशेष महत्व है
मान्यता है कि भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं और यह भगवान शिव के परम भक्त माने जाते है। भगवान परशुराम का जन्म माता रेणुका और ऋषि जमदग्नि के घर प्रदोष काल में हुआ था, उन्हें चिरंजीवी भी माना गया है। वह अपने माता-पिता के आज्ञाकारी पुत्र थे, फिर भी, पिता की आज्ञा पर उन्होंने अपनी माता की गर्दन तक काट दी थी। आज्ञाकारी परशुराम से प्रसन्न होकर उन्होंने वरदान मांगने को कहा, परशुराम ने अपनी माता को पुनर्जीवित करने का वर मांगा, उनकी इच्छा पूरी हुई और रेणुका देवी को नया जीवन मिला । परशुराम की तेज बुद्धि और निष्ठा से प्रसन्न होकर ऋषि जमदग्नि ने उन्हें समस्त शास्त्रों और शस्त्रों का ज्ञाता होने का आशीर्वाद भी दिया, हालांकि, अपनी मां का वध करने के कारण परशुराम को 'मातृहत्या' का पाप लगा, इस पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या की भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें पाप से मुक्त किया और 'परशु' नामक दिव्य अस्त्र प्रदान किया। इसी कारण वे 'परशुराम' कहलाए इसलिए, आज भी परशुराम का जीवन आज्ञापालन, तपस्या और धर्म रक्षा के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है।
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